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जानिए क्यों ज्यादा शिट बीजेपी ने जीती कर्नाटक में.

आज हम बात करने जा रहे है उन 6 बिन्दुओ पर जिसके कारण आज बीजेपी ने कर्नाटका में एक ऐतिहासिक बढ़त हासिल की है.



सत्ता विरोध लहर : 
कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार थी। विधानसभा चुनाव 2018 के नतीजे के शुरुआती रुझानों से यही लगता है की इस बार सत्ता विरोधी पार्टी बीजेपी सरकार बनाएगी। इसी कारण बीते साल बीजेपी ने यूपी और उत्तराखंड के विधानसभा चुनाव में जबरदस्त जित दर्ज की थी। त्रिपुरा, नागालैंड, मणिपुर  मेघालय में भी सत्ता विरोधी लहर ने ही बीजेपी को जित दिलाई। आज बीजेपी कर्नाटक में अपनी सरकार बनाने जा रही है और हम आपको बताना चाहेंगे की कर्नाटक 22वा राज्य होगा जहाँ बीजेपी फतह करने के कगार पर है।

2013 के चुनाव से अलग रणनीति :
बीजेपी ने इस बार कर्नाटक में 2013 से अलग रणनीति अपनाई। इसबार के चुनाव में बीजेपी एकदम बदली नजर आयी। इस बार जितने भी प्रचार हुए उसमे कांग्रेस की गलतियों पर जम कर नेताओ ने प्रहार किया। बीजेपी के नेता इस बार चुनाव जितने को लेकर काफी आक्रामक दिखी। 2013 में खनन माफिया रेड्डी बंधुवो से रिश्ते सामने आने पर बीजेपी को मुख्यमंत्री यदुरप्पा से इस्तीफा लेना परा था, जिसके कारण बीजेपी 3 भागो में बट गयी थी -एक पार्टी के साथ था दूसरा यदुरप्पा के साथ थी और तीसरी श्रीराममुलु के साथ चला गया था सो इसलिए उस साल कांग्रेस आसानी से चुनाव जित गयी थी। लेकिन इस बार बीजेपी ने अपनी छवि में सुधार किया और जित की राह पर बढ़ चली है।

धनबल : 
बीजेपी पुरे देश में 21 राज्यों  में अपनी सरकार चला रही है और इसके कारण 2019 के लोकसभा चुनाव को आसानी से जित ले। अगर देखा जाये तो बीजेपी धन से कांग्रेस से ज्यादा मजबूत है और इसका कारण है 22 राज्यों में बीजेपी की सरकार है और इसके वहाँ पर अच्छे काम इसको अच्छा डोनेशन दिलवाती है जो चुनाव प्रचार में काफी मददगार होती है और जित दिलाती है। अगर हम कांग्रेस की बात करे तो कांग्रेस सिर्फ एक मात्र बरे राज्य पंजाब में सरकार बनाई हुई है, इस लहजे से कारोबारी कांग्रेस में ज्यादा दिलचस्पी नहीं लेते।

स्वयं-सेवको की फ़ौज :
बीजेपी के पास अनपेड वौलिंटिअर की एक बरी फ़ौज है जो देशहित की भावना के साथ एक अच्छी सरकार लाने के लिए बेजोड़ काम करती है लेकिन कांग्रेस के साथ ऐसा नहीं है, कांग्रेस सिर्फ आइडियोलॉजी के साथ चलती है जिसमे सिर्फ बेईमानी है। कांग्रेस को एजेंटो की मदद लेनी परती है। राजनितिक पंडितो का कहना है की धन और स्वयंसेवी अकेले चुनाव नहीं जीता सकते लेकिन अगर ये साथ आजाये तो राह आसान हो जाती है।

राज्य का पिछरना :
मुख्यमत्री सिद्धरमैया के कार्यकाल में कर्नाटक की तरक्की रुक सी गयी थी। इनका कार्य भले ही प्रभावशाली रहा हो लेकिन राज्य की तरक्की और जीडीपी नहीं बढ़ी। सिद्धरमैया ने चुनाव जितने के लिए काफी दाओ खेले जैसे लिंगायत समुदाय को अल्पसंख्यक होने का दर्जा देने का वादा करना, एक रुपये किलो चावल बटवाना,आंशिक कर्ज माफ़ी, कैंटीन में सिर्फ 5 रुपये का भोजन उपलब्ध करवाना लेकिन ये सिर्फ लालच और लोभ की राजनीती बन कर रह गयी वही बीजेपी ने तरक्की की राजनीती का सहारा लिया और जित हासिल की।

प्रधानमन्त्री फैक्टर :
प्रधानमन्त्री ने भी यहाँ पर अपना पूरा दमखम दिखाया। आपको हम बताना चाहेंगे की पहले मोदी जी कर्नाटक में 15 रैलिया करने वाले थे लेकिन बाद में चुनाओ के माहौल को देखकर ये संख्या 15 से 21 कर दी गयी। प्रधानमंत्री ने असल मुदो को उठाया सवाल किया जनता से की क्या आपकी तरक्की हुई है और सरकार से सवाल किया की आपकी सरकार ने 5 सालो में राज्य के अंदर क्या तरक्की वाले काम किये है, हमें आप गिनवाए।


सम्पादक : विशाल कुमार सिंह

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