कर्नाटक में राजयपाल के फैसले के खिलाफ भले ही कांग्रेस बार-बार सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा रही हो, लेकिन सच ये है की इसकी शुरुआत कांग्रेस ने ही की थी आज हमारा चर्चा का विषय ये है की कब कहाँ कांग्रेस ने केंद्र में रहते हुए राज्य सरकार को बर्खास्त किया।
आजादी का समय :
आजादी के बाद जब प्रधामंत्री पद के लिए वोटिंग हुई थी। कांग्रेस के वरिष्ठ अधिकारी और गाँधी जी के बिच उसमे सरदार पटेल और नेहरू के बिच प्रधानमंत्री पद की स्पर्धा थी । जब वोटिंग पूरी हुई तो उस में बहुमत सरदार पटेल को मिला लेकिन नेहरू ने कांग्रेस तोड़ने की धमकी दी जिसके बाद नेहरू को प्रधानमंत्री बनाया गया और सरदार पटेल को गृह मंत्री बने।
बाबरी मस्जिद का वक़्त :
सन 1992 में बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने बीजेपी शाषित 4 राज्यों में सरकार बर्खास्त कर दी थी।
बोम्मई केस :
कांग्रेस सरकार ने अपनी मनमानी कर के कई राज्यों में राष्ट्पति शाशन लगाया था जिसमे हम आपको बोम्मई केस के बारे में बताने जा रहे है। बात है सन 1988 की जिसमे बोम्मई सरकार को बर्खास्त कर दिया गया था। 1994 में सुप्रीम कोर्ट ने संवैधानिक बेंच के सामने इन तमाम मामलों को लेकर सुनवाई की, जिसे बोम्मई केस के नाम से जाना जाता है। बोम्मई केस में धारा 356 की जरुरत और इसके गलत इस्तेमाल को लेकर बहस हुई थी। इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस की जबरदस्ती लिए गए फैसलों को गलत बताया था और उस वक़्त सुप्रीम कोर्ट ने बोला की अगर केंद्र की सरकार किसी राज्य की सरकार को गलत तरीके से बेदखल करती है तो राज्य की वो सरकार सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने बोला की अगर राज्य सरकार अपने पक्छ को सही तरीके से पेश करती है और खुद को सही शाबित करती है तो बर्खास्त सरकार को फिर से बहाल किया जा सकता है । साथ ही कोर्ट ने ये व्यवस्था दी की राष्ट्पति शासन को संसद की स्वीकृति प्राप्त होनी चाहिए।
आंध्र-प्रदेश 1984 :
आँध्रप्रदेश में पहली बार 1983 में एन.टी राम्राव के नेतृत्वा में गैर कांग्रेसी सरकार बानी। 1984 में तेलगु देशम पार्टी के नेता और मुख्यमंत्री एन.टी राम्राव को हार्ट सर्जरी के लिए अचानक विदेश जाना पारा। इंद्रा गाँधी ने इस मौके का फायदा उठाया और राष्ट्पति के द्वारा सरकार को बर्खास्त करवा दिया। हालांकि जब मुख्यमंत्री एन.टी राम्राव लौटे तो उन्होंने फिर से अपना बहुमत साबित किया और दोबारा मयख़्यमंत्री बने।
मद्रास 1952 :
1952 में पहले आम चुनाव के बाद ही राज्यपाल के पद का दुरूपयोग सुरु हो गया। मद्रास (तमिलनाडु) में अधिक विधायकों वाले संयुक्त मोर्चे के बजाये कम विधायकों वाले कांग्रेस के नेता सी. राजगोपालाचारी को सरकार बनाने का मौका दिया।
केरल 1959 :
भारत में पहली बार कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार इएमएस नम्बूदरीपाद के नेतृत्वा में साल 1957 में चुनी गयी लेकिन राज्य में कथित मुक्ति संग्राम के बहाने तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने 1959 सरकार को राज्य से बर्खास्त कर दिया। ये करने वाले और कोई नहीं बल की हमारे देश के पहले प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू थे । ये राज्य भारत का पहला राज्य था जहाँ छेत्रिये सरकार थी बस यही बात नेहरू को नहीं पचती थी।
हरियाणा 1982 :
वर्ष 1979 में हरियाणा में देवीलाल के नेतृत्वा में लोकदल की सरकार बनी। 1982 में भजनलाल ने देवीलाल के कई विधायकों को को अपने पक्छ में कर लिया जिसके बाद भजनलाल ने राज्यपाल पर दबाओ बनाया की हमारी पार्टी को आप सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करे और तत्कालीन सरकार को बर्खास्त करे। जिसके बाद राज्यपाल ने तत्कालीन सरकार को बर्खास्त किया और भजनलाल को सरकार बनाने का नेवता दिया जिसके बाद भजनलाल ने अपनी बहुमत शाबित भी किया और जबरदस्ती की अपनी सरकार बनाई।
जम्मू कश्मीर 1984 :
1984 में जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन राज्यपाल बी.के नेहरू ने केंद्र के दबाओ के बावजूद फारुख अब्दुला के नेतृत्व वाली राज्य सरकार के खिलाफ रिपोर्ट भेजने से इनकार कर दिया। अंततः केंद्र सरकार ने उनका तबादला गुजरात कर दिया और दूसरा राज्यपाल भेजकर मनमाफिक रिपोर्ट बनवाई और राज्य सरकार को बेदखल किया।
कर्नाटक 1989 :
कर्नाटक में 1983 में पहली बार बीजेपी की सरकार बानी थी। रामकृष्ण हेगडे जनता पार्टी के पहले मुख्यमंत्री थे। इसके बाद 1988 में बोम्मई कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने लेकिन राज्यपाल ने 21 अप्रैल, 1989 को बोम्मई सरकार को बर्खास्त कर दिया था। राज्यपाल ने बोलै की बोम्मई सरकार विधानसभा में अपना बहुमत खो चुकी है इसलिए इनको बर्खास्त किया। बाद में बोम्मई सरकार ने राज्यपाल से समय मानेगा की मुझे बहुमत शाबित करने का समय दिया जाये लेकिन राज्यपाल ने मना कर दिया लेकिन बोम्मई हार नहीं माने और कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और फैसला बोम्मई के पक्छ में आया और फिर से बोम्मई की सरकार बानी।
गुजरात 1996 :
साल 1996 में गुजरात में सुरेश मेहता मुख्यमंत्री थे, इस सरकार को भी राज्यपाल ने बर्खास्त कर दिया था क्युकी शंकर सिंह वघेला ने दवा किया था की उनके पास 40 विधायकों का समर्थन है जिसके बाद राज्यपाल ने सुरेश मेहता को अपना बहुमत शाबित करने को कहा था।
झारखण्ड 2005 :
वर्ष 2005 में झारखण्ड सीबू सोरेन ने मुख्यमंत्री पद की सपथ ली और इनको 9 दिनों का वक़्त मिला अपना बहुमत शाबीत करने का लेकि ये नहीं कर पाए सो इन्हे अपने पद से स्तीफा देनी पारी जिसके बाद बीजेपी ने अपना बहुमत शाबित किया और बीजेपी की सरकार बानी जिसमे अर्जुन मुंडा मुख्यमंत्री बने।
बिहार 2005 :
साल 2005 में बिहार के तत्कालीन राज्यपाल ने विधानसभा चुनाव के बाद किसी पार्टी को बहुमत न मिलने के केस में विधानसभा भंग करने की सिफारिश की लेकि सुप्रीम सूरत ने इस फैसले की आलोचना की।
कर्नाटक 2009 :
यूपीए की सरकार में केंद्रीय मंत्री रह चुके हंशराज भरद्वाज को 25 जून,2009 को कर्नाटक का राज्यपाल नियुक्त किया गया था। भरद्वाज ने कर्नाटक में बीजेपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री यदुरप्पा की बहुमत वाली सरकार को बर्खास्त कर दिया था। राज्यपाल ने कहा था की यदुरप्पा ने फर्जी तरीके से बहुमत हाशिल किया है।
सम्पादक : विशाल कुमार सिंह
आजादी का समय :
आजादी के बाद जब प्रधामंत्री पद के लिए वोटिंग हुई थी। कांग्रेस के वरिष्ठ अधिकारी और गाँधी जी के बिच उसमे सरदार पटेल और नेहरू के बिच प्रधानमंत्री पद की स्पर्धा थी । जब वोटिंग पूरी हुई तो उस में बहुमत सरदार पटेल को मिला लेकिन नेहरू ने कांग्रेस तोड़ने की धमकी दी जिसके बाद नेहरू को प्रधानमंत्री बनाया गया और सरदार पटेल को गृह मंत्री बने।
बाबरी मस्जिद का वक़्त :
सन 1992 में बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने बीजेपी शाषित 4 राज्यों में सरकार बर्खास्त कर दी थी।
बोम्मई केस :
कांग्रेस सरकार ने अपनी मनमानी कर के कई राज्यों में राष्ट्पति शाशन लगाया था जिसमे हम आपको बोम्मई केस के बारे में बताने जा रहे है। बात है सन 1988 की जिसमे बोम्मई सरकार को बर्खास्त कर दिया गया था। 1994 में सुप्रीम कोर्ट ने संवैधानिक बेंच के सामने इन तमाम मामलों को लेकर सुनवाई की, जिसे बोम्मई केस के नाम से जाना जाता है। बोम्मई केस में धारा 356 की जरुरत और इसके गलत इस्तेमाल को लेकर बहस हुई थी। इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस की जबरदस्ती लिए गए फैसलों को गलत बताया था और उस वक़्त सुप्रीम कोर्ट ने बोला की अगर केंद्र की सरकार किसी राज्य की सरकार को गलत तरीके से बेदखल करती है तो राज्य की वो सरकार सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने बोला की अगर राज्य सरकार अपने पक्छ को सही तरीके से पेश करती है और खुद को सही शाबित करती है तो बर्खास्त सरकार को फिर से बहाल किया जा सकता है । साथ ही कोर्ट ने ये व्यवस्था दी की राष्ट्पति शासन को संसद की स्वीकृति प्राप्त होनी चाहिए।
आंध्र-प्रदेश 1984 :
आँध्रप्रदेश में पहली बार 1983 में एन.टी राम्राव के नेतृत्वा में गैर कांग्रेसी सरकार बानी। 1984 में तेलगु देशम पार्टी के नेता और मुख्यमंत्री एन.टी राम्राव को हार्ट सर्जरी के लिए अचानक विदेश जाना पारा। इंद्रा गाँधी ने इस मौके का फायदा उठाया और राष्ट्पति के द्वारा सरकार को बर्खास्त करवा दिया। हालांकि जब मुख्यमंत्री एन.टी राम्राव लौटे तो उन्होंने फिर से अपना बहुमत साबित किया और दोबारा मयख़्यमंत्री बने।
मद्रास 1952 :
1952 में पहले आम चुनाव के बाद ही राज्यपाल के पद का दुरूपयोग सुरु हो गया। मद्रास (तमिलनाडु) में अधिक विधायकों वाले संयुक्त मोर्चे के बजाये कम विधायकों वाले कांग्रेस के नेता सी. राजगोपालाचारी को सरकार बनाने का मौका दिया।
केरल 1959 :
भारत में पहली बार कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार इएमएस नम्बूदरीपाद के नेतृत्वा में साल 1957 में चुनी गयी लेकिन राज्य में कथित मुक्ति संग्राम के बहाने तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने 1959 सरकार को राज्य से बर्खास्त कर दिया। ये करने वाले और कोई नहीं बल की हमारे देश के पहले प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू थे । ये राज्य भारत का पहला राज्य था जहाँ छेत्रिये सरकार थी बस यही बात नेहरू को नहीं पचती थी।
हरियाणा 1982 :
वर्ष 1979 में हरियाणा में देवीलाल के नेतृत्वा में लोकदल की सरकार बनी। 1982 में भजनलाल ने देवीलाल के कई विधायकों को को अपने पक्छ में कर लिया जिसके बाद भजनलाल ने राज्यपाल पर दबाओ बनाया की हमारी पार्टी को आप सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करे और तत्कालीन सरकार को बर्खास्त करे। जिसके बाद राज्यपाल ने तत्कालीन सरकार को बर्खास्त किया और भजनलाल को सरकार बनाने का नेवता दिया जिसके बाद भजनलाल ने अपनी बहुमत शाबित भी किया और जबरदस्ती की अपनी सरकार बनाई।
जम्मू कश्मीर 1984 :
1984 में जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन राज्यपाल बी.के नेहरू ने केंद्र के दबाओ के बावजूद फारुख अब्दुला के नेतृत्व वाली राज्य सरकार के खिलाफ रिपोर्ट भेजने से इनकार कर दिया। अंततः केंद्र सरकार ने उनका तबादला गुजरात कर दिया और दूसरा राज्यपाल भेजकर मनमाफिक रिपोर्ट बनवाई और राज्य सरकार को बेदखल किया।
कर्नाटक 1989 :
कर्नाटक में 1983 में पहली बार बीजेपी की सरकार बानी थी। रामकृष्ण हेगडे जनता पार्टी के पहले मुख्यमंत्री थे। इसके बाद 1988 में बोम्मई कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने लेकिन राज्यपाल ने 21 अप्रैल, 1989 को बोम्मई सरकार को बर्खास्त कर दिया था। राज्यपाल ने बोलै की बोम्मई सरकार विधानसभा में अपना बहुमत खो चुकी है इसलिए इनको बर्खास्त किया। बाद में बोम्मई सरकार ने राज्यपाल से समय मानेगा की मुझे बहुमत शाबित करने का समय दिया जाये लेकिन राज्यपाल ने मना कर दिया लेकिन बोम्मई हार नहीं माने और कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और फैसला बोम्मई के पक्छ में आया और फिर से बोम्मई की सरकार बानी।
गुजरात 1996 :
साल 1996 में गुजरात में सुरेश मेहता मुख्यमंत्री थे, इस सरकार को भी राज्यपाल ने बर्खास्त कर दिया था क्युकी शंकर सिंह वघेला ने दवा किया था की उनके पास 40 विधायकों का समर्थन है जिसके बाद राज्यपाल ने सुरेश मेहता को अपना बहुमत शाबित करने को कहा था।
झारखण्ड 2005 :
वर्ष 2005 में झारखण्ड सीबू सोरेन ने मुख्यमंत्री पद की सपथ ली और इनको 9 दिनों का वक़्त मिला अपना बहुमत शाबीत करने का लेकि ये नहीं कर पाए सो इन्हे अपने पद से स्तीफा देनी पारी जिसके बाद बीजेपी ने अपना बहुमत शाबित किया और बीजेपी की सरकार बानी जिसमे अर्जुन मुंडा मुख्यमंत्री बने।
बिहार 2005 :
साल 2005 में बिहार के तत्कालीन राज्यपाल ने विधानसभा चुनाव के बाद किसी पार्टी को बहुमत न मिलने के केस में विधानसभा भंग करने की सिफारिश की लेकि सुप्रीम सूरत ने इस फैसले की आलोचना की।
कर्नाटक 2009 :
यूपीए की सरकार में केंद्रीय मंत्री रह चुके हंशराज भरद्वाज को 25 जून,2009 को कर्नाटक का राज्यपाल नियुक्त किया गया था। भरद्वाज ने कर्नाटक में बीजेपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री यदुरप्पा की बहुमत वाली सरकार को बर्खास्त कर दिया था। राज्यपाल ने कहा था की यदुरप्पा ने फर्जी तरीके से बहुमत हाशिल किया है।
सम्पादक : विशाल कुमार सिंह
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