पंजाब सरकार में पर्यटन मंत्रालय गँवाने के बाद अब नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरिंदर सिंह के आठ महत्वपूर्ण परामर्शदाता समूहों में भी जगह नहीं मिली है। यह समूह मंत्रियों, विधायकों और वरिष्ठ नौकरशाहों को मिलाकर बने हैं और इनका काम पंजाब की राज्य सरकार की महत्वपूर्ण परियोजनाओं की निगरानी करना है। समूहों के सदस्यों की घोषणा कल (8 जून, शनिवार) को की गई है। एक प्रेस विज्ञिप्ति के मुताबिक मुख्यमंत्री खुद शहरी नवीनीकरण और ड्रग्स-विरोधी मुहिम से जुड़े समूहों की अध्यक्षता करेंगे।
लोकसभा निर्वाचन और उससे पहले पुलवामा–बालाकोट प्रकरण के दौरान कॉन्ग्रेस को अपनी अनर्गल बयानबाजी से नुकसान पहुँचाने वाले सिद्धू को कैप्टेन ने लोकसभा चुनाव के बाद हुए अपने कैबिनेट पुनर्गठन में पर्यटन जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय से बाहर का रास्ता दिखा दिया था। 1965 की जंग में सेना में सेवाएँ दे चुके कैप्टेन बालाकोट पर सिद्धू के बयान से खासा नाराज़ चल ही रहे थे। जब कैप्टेन ने सीधे-सीधे सिद्धू के पाकिस्तानी सेना प्रमुख को गले लगाने पर निशाना साधा था, तभी पक्का हो गया था कि वह सिद्धू पर कार्रवाई करेंगे। पुनर्गठन में सिद्धू को अपेक्षाकृत ‘हल्के’ माने जाने वाले ऊर्जा और अक्षय ऊर्जा मंत्रालय का प्रभार दिया गया था, जो उन्होंने खबर लिखे जाने तक ग्रहण नहीं किया है।
इस बीच खबर यह भी है कि दिल्ली में डेरा डाले सिद्धू ने कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी से मिलने के लिए समय माँगा है। नवजोत सिंह सिद्धू को कैप्टेन ने किनारे पर खड़ा कर दिया है। जैसे कैप्टेन ने सिद्धू को सीधे बाहर कर विक्टिम-कार्ड खेलने का मौका देने की बजाय कम वरीयता के मंत्रालय पकड़ा कर ‘घर में ही बाहरी’ कर दिया है, उसी तरह भाजपा ने भी ‘शॉटगन’ शत्रुघ्न सिन्हा को उकसावे के हद तक जाने वाली अनुशासनहीनता के बावजूद बाहर निकालने की बजाय पार्टी के अंदर रखेे-रखे ही इतना अप्रासंगिक कर दिया कि खिसिया कर शत्रुघ्न को खुद ही पार्टी छोड़नी पड़ी।