नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका भारत आइडिया में, दोस्तों आज हम बात करने वाले हैं सुप्रीम कोर्ट के दिए हुए आदेश को भाजपा नेता ने नकारते हुए कहा है कि वो रात को 10:00 बजे के बाद ही पटाखे जलाएंगे .
क्या है मामला:
हां दोस्तों आपने सही सुना भाजपा नेता चिंतामणि मालवीय ने कहा है कि वह रात को 10:00 बजे के बाद ही पटाखे जलाएंगे. आपको ज्ञात हो तो आज सुप्रीम कोर्ट ने बीते दिन यह फैसला सुनाया है कि दीपावली में पटाखे जलाने की अवधि 8:00 बजे से लेकर 10:00 बजे तक रहेगी लेकिन भाजपा नेता चिंतामणि मालवीय ने 1 एक ट्वीट के जरिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश को मानने से इनकार कर दिया है.
हां दोस्तों आपने सही सुना भाजपा नेता चिंतामणि मालवीय ने कहा है कि वह रात को 10:00 बजे के बाद ही पटाखे जलाएंगे. आपको ज्ञात हो तो आज सुप्रीम कोर्ट ने बीते दिन यह फैसला सुनाया है कि दीपावली में पटाखे जलाने की अवधि 8:00 बजे से लेकर 10:00 बजे तक रहेगी लेकिन भाजपा नेता चिंतामणि मालवीय ने 1 एक ट्वीट के जरिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश को मानने से इनकार कर दिया है.
मूर्ति पूजन कर लूंगा फिर पटाखे फोड़ूंगा:
बीजेपी सांसद चिंतामणि मालवीय ने एक ट्वीट के जरिए कहा कि वह परंपरागत तरीके से दीपावली का त्योहार मनाएंगे, पहले मैं लक्ष्मी पूजन करूंगा और फिर रात 10:00 बजे के बाद पटाखे चलाऊंगा. चिंतामणि ने यह भी कहा कि यह उनका धार्मिक मामला है और वह अपने धार्मिक मामले में किसी की दखलअंदाजी नहीं चाहते.
बीजेपी सांसद चिंतामणि मालवीय ने एक ट्वीट के जरिए कहा कि वह परंपरागत तरीके से दीपावली का त्योहार मनाएंगे, पहले मैं लक्ष्मी पूजन करूंगा और फिर रात 10:00 बजे के बाद पटाखे चलाऊंगा. चिंतामणि ने यह भी कहा कि यह उनका धार्मिक मामला है और वह अपने धार्मिक मामले में किसी की दखलअंदाजी नहीं चाहते.
भारत आइडिया का विचार:
बहरहाल जो भी हो चिंतामणि ने यह बात तो सही कही है कि हर बार सुप्रीम कोर्ट को हिंदू त्योहारों में ही कमियां निकालनी होती है, सुप्रीम कोर्ट कभी भी किसी अन्य धर्मों के त्योहारों के विरुद्ध जाकर कोई फैसला नहीं सुनाता सो अब वक्त आ गया है कि हमें भी अपनी आवाज खुद उठानी होगी क्योंकि हमारे परंपरागत त्यौहार ही हमारी पहचान है.
बहरहाल जो भी हो चिंतामणि ने यह बात तो सही कही है कि हर बार सुप्रीम कोर्ट को हिंदू त्योहारों में ही कमियां निकालनी होती है, सुप्रीम कोर्ट कभी भी किसी अन्य धर्मों के त्योहारों के विरुद्ध जाकर कोई फैसला नहीं सुनाता सो अब वक्त आ गया है कि हमें भी अपनी आवाज खुद उठानी होगी क्योंकि हमारे परंपरागत त्यौहार ही हमारी पहचान है.
संपादक : विशाल कुमार सिंह