मृत्यु भी अटल सत्य है, न चाहते हुए भी जो भी इस संसार मे आता है उसे अपनी यात्रा पूर्ण कर एक दिन अपने धाम को लौटना होता है।इस जीवन रूपी यात्रा में सफलता और असफलता का पैमाना सिर्फ आपको चाहने वालो की फ़ेहरिश्त है और उनकी वो दुआएं एव शुभकामनाएं है जो आज दलगत राजनीति,सम्प्रदाय वर्ग से ऊपर उठकर श्री अटल जी को मिल रही है।
देश के प्रधानमंत्री रहे, शानदार कवि, ओजस्वी वक्ता, भारत रत्न से सम्मानित हुए और इस सबसे अलग वो सम्मान जो किसी को नही मिलता वह सभी के लिए सम्मानित है वह सभी को प्रिय है इसके अलावा मुझे नही लगता कोई व्यक्ति ईश्वर से कुछ और भी चाहता होगा उन्होंने सब कुछ पा लिया लम्बे समय से गम्भीर रूप से अस्वस्थ होने के बावजूद मृत्यु को इंतज़ार के लिए कह दिया शायद उन्हें भाजपा का ये स्वर्णिम युग देखने का इंतज़ार था।
2 सांसदों वाली पार्टी को विश्व की सबसे बड़े राजनैतिक दल के रूप में अटल जी जीवित शरीर से से देख पाए, शायद इस आग्रह को ईश्वरीय देव दूतों ने भी स्वीकार कर लिया लेकिन अब विदाई का समय है, वह लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर है और हमें हरगिज़ दुखी नही होना है बल्कि अब समय है उस वक़्त का जब वो रथ से अपने धाम को जायेगे और उनके समर्थक खड़े होकर तालियां बजाकर उस महामानव को शानदार विदाई देंगे।
अंत में अटल जी की इन पंक्तियों के साथ उन्हें नमन करता हूँ।
"मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ
लौटकर आऊँगा,कूच से क्यों डरूँ?"
सम्पादक विशाल कुमार सिंह
सम्पादक विशाल कुमार सिंह