नमस्कार दोस्तों आप सबका स्वागत है भारत आइडिया के इस नए संस्करण के समाचार लेख में। भारत आइडिया के पाठकों आज इस लेख में हम राजस्थान की राजनीति के ऊपर चर्चा करेंगे कि आखिर इसकी अंतिम बाजी जिसके हाथ लगेगी ।
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लोकसभा चुनाव 2019 के परिणाम के बाद से ही लग रहा था कि कुछ राज्यों में भारतीय जनता पार्टी अपनी रणनीति के तहत कार्य करेगी। मध्य प्रदेश में बहुमत के ठीक करीब टिकी कांग्रेस की कमलनाथ सरकार को हिलाने की कवायद पर भाजपा ने रोक लगाई है। दरअसल, भाजपा को लगने लगा है कि जिस प्रकार की शासन व्यवस्था मध्य प्रदेश में चल रही है, वह भाजपा की नींव को ही प्रदेश में मजबूत कर रही है। राजस्थान के लिए भाजपा अपनी अलग रणनीति पर काम कर रही है। राजस्थान में पार्टी को विधानसभा चुनाव में काफी पीछे रह जाना पड़ा था।
राजस्थान विधानसभा चुनाव 2018 में कांग्रेस भी बहुमत के ठीक पास पहुंच सकी। इस कारण एक बार फिर स्थिर सरकार चलाने के लिए अशोक गहलोत केंद्रीय राजनीति से राज्य में चले आए। पिछले पांच साल से राज्य में रहकर संघर्ष कर रहे सचिन पायलट को एक बार फिर खाली हाथ रह जाना पड़ा।
मुख्यमंत्री की कुर्सी उन्हें नहीं मिल सकी। ऐसे में उनके समर्थकों की नाराजगी लोकसभा चुनाव में दिखी, जब कांग्रेस को राज्य की एक भी सीट पर जीत नहीं मिल पाई। भाजपा सभी सीट जीती तो इसके पीछे की वजह केवल पीएम नरेंद्र मोदी ही रहे। ऐसे में राज्य के नेतृत्व के समकक्ष कुछ लोगों को खड़ा करने की रणनीति पर भाजपा ने काम करना शुरू कर दिया है। कोटा से दूसरी बार सांसद बने ओम बिरला का कद बढ़ाया जाना इसी रणनीति का हिस्सा है।
राजस्थान की राजनीति में ओम बिड़ला को वसुंधरा राजे के विरोधी खेमे का माना जाता है। ऐसे में ओम बिरला को लोकसभा अध्यक्ष बनाने का फैसला भाजपा की राजनीति में बड़े बदलाव के संकेत दे रहा है। प्रदेश के नजरिए से यह फैसला तो परंपरा से हटकर है। दरअसल, भाजपा ने हाल के समय में मारवाड़ से गजेंद्र सिंह शेखावत और हाड़ौती से ओम बिरला का कद बढ़ा दिया है। हाड़ौती रीजन से वसुंधरा राजे के बेटे चौथी बार सांसद बने, लेकिन उन्हें यह मौका नहीं मिला। हाड़ौती में भी अब ओम बिरला का कद सबसे ऊपर हो गया है। कहीं यह वसुंधरा राजे की राजनीति के समकक्ष एक राजनीति खड़ी करने का प्रयास तो नहीं है। वैसे भी राज्यवर्द्धन सिंह राठौर को मोदी सरकार में कोई पद न देकर खतरे की घंटी पहले ही बजा दी गई है।