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अकेलापन इन मरीजों के लिए है बेहद खतरनाक, मौत के खतरे को कर देता है दोगुना / Loneliness is extremely dangerous for these patients, doubling the risk of death




यूं तो अकेलापन सभी के लिए खराब होता है लेकिन दिल के मरीजों के लिए यह बेहद घातक है और उनमें मौत के खतरे को दोगुना करता है।



 यूं तो अकेलापन सभी के लिए खराब होता है ,लेकिन दिल के मरीजों के लिए यह बेहद घातक है और उनमें मौत के खतरे को दोगुना करता है. हाल ही में हुए एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि हृदय की बीमारी से जूझ रहे महिला और पुरूष दोनों में अकेले रहने की बजाए अकेलेपन का अहसास अधिक घातक होता है.

डेनमार्क के कॉपेनहेगन यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल में पीएचडी की छात्र एनी विनगार्ड क्रिस्टेन्सन कहती हैं कि आज के वक्त में तन्हाई का अहसास बहुम आम है जितना पहले कभी नहीं था और काफी लोग अकेले रह रहे हैं. उन्होंने कहा कि पहले के शोध यह दिखाते हैं कि अकेलापन और सामाजिक अलगाव हृदय की बीमारी और हृदयाघात से जुड़े हैं, लेकिन विभिन्न हृदय रोगों से जूझ रहे मरीजों के बीच इसकी जांच नहीं की गई थी. इस अध्ययन के लिए डेनमार्क के पांच अस्पताल से अप्रैल २०१३ से अप्रैल २०१४ के बीच छुट्टी पाए मरीजों को चुना गया.  उनसे एक प्रश्नावली भरने को कहा गया जिसमें शारीरिक, मानसिक, लाइफस्टाइल से जुड़े प्रश्न थे।

अवसाद समय से पहले आपके दिमाग को बना देगा कमजोर! 
एक अध्ययन में दावा किया गया है कि अवसाद समय से पहले मस्तिष्क को उम्रदराज बना देता है. अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि वैज्ञानिकों ने पूर्व में बताया था कि अवसाद या एंग्जाइटी से पीड़ित लोगों को उम्र बढ़ने के साथ साथ डिमेन्शिया होने का खतरा बढ़ता जाता है. उन्होंने कहा कि ‘‘ साइकोलॉजिकल मेडिसिन ’’ जर्नल में प्रकाशत यह अध्ययन संज्ञानात्मक कार्यकलापों में कमी पर अवसाद के प्रभाव के बारे में व्यापक प्रमाण पेश करता है।


ब्रिटेन स्थित ससेक्स विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ताओं ने ३४ अध्ययनों की समीक्षा की
ब्रिटेन स्थित ससेक्स विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ताओं ने 34 अध्ययनों की समीक्षा की. इस दौरान उनका मुख्य ध्यान अवसाद या एंग्जाइटी तथा समय के साथ संज्ञानात्मक कार्यकलापों में कमी के बीच संबंध पर था. अनुसंधानकर्ताओं ने संज्ञानात्मक कार्यकलापों में वयस्कों में स्मरण क्षमता में कमी , निर्णय लेने तथा सूचना संसाधन संबंधी गति आदि को शामिल किया।

ससेक्स विश्वविद्यालय की दारया गाइसिना ने कहा ‘‘ यह अध्ययन महत्वपूर्ण है क्योंकि हमारी आबादी के बूढ़़े होने की दर अधिक है. आशंका है कि अगले तीस साल में संज्ञानात्मक कार्यकलापों में कमी वाले तथा डिमेन्शिया से पीड़ित लोगों की संख्या बढ़ेगी. ’’उन्होंने कहा ‘‘हमें हमारे अवसादग्रस्त तथा डिमेन्शिया से पीड़ित बुजुर्गों की मानसिक स्थिति बेहतर बनाए रखने के लिए उनकी सही तरीके से देखभाल करने की जरूरत है ताकि उम्र बढ़ने के दौरान उनके मस्तिष्क की क्षमता पर अधिक असर न हो.’’ 

८० जीनों की हुई खोज, अवसाद के इलाज में मिलेगी मदद
वैज्ञानिकों ने लगभग ८० जीनों की खोज की है जो अवसाद से जुड़े हो सकते है. ये जीन यह समझाने में मदद कर सकते है कि क्यों कुछ लोग इस हालत के विकसित करने के जोखिम वाले उच्च स्तर पर होते है.  ब्रिटेन में एडिनबर्ग विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में किये गये इस अध्ययन से मानसिक बीमारियों से निपटने के लिए दवाओं को विकसित करने में मदद मिल सकती है. जर्नल नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित एक शोध के मुताबिक विश्वभर में दिव्यांगता का प्रमुख कारण अवसाद है।

संपादक:आशुतोष उपाध्याय

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