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पांडवो का घमंड कैसे टुटा जरूर जाने और जीवन में एक महतपूर्ण सिख ले।


महाभारत की कथा के इस भाग में आपका स्वागत है आज हम बात करने वाले है पांडवो के बारे में की कैसे उनका अभिमान टुटा और युधिष्ठिर ने कैसे धर्म की रक्षाकरते हुए अपने सारे भाइयो को जीवन प्रदान किया।



जब पांडव वन विहार विहार पर थे और काफी थक चुके थे तो पांडवो ने वन में एक स्थान पर विश्राम करने का निर्णय लिया, पांडवो को प्यास भी लग रही थी सो अनुज पांडव नकुल ने कहा की मै जल लेकर आता हूँ, आप सब यही विश्राम करे। नकुल जब जल की तलाश कर रहे थे तभी उनको अपने शमीप एक जलाशय दिखा और वो उस जलाशय की और जल पिने के लिए बढे तभी अचानक ही एक आकाशवाणी हुई जिसने नकुल को चेतावनी देते हुए कहा - हे पाण्डु पुत्र ! यह मेरा जलाशय है, अगर तुम इसका जल पीना चाहते हो तो तुम्हे मेरी जिज्ञासा को शांत करना होगा जिसके लिए तुम्हे मेरे कुछ प्रश्नो के उत्तर देने होंगे और अगर तुम मेरी बात नहीं मानोगे तो तुम्हे मृत्यु का भागी बनना होगा। नकुल ने उसकी एक ना सुनी, नकुल को खुद पर और अपने भाइयो की शक्ति पर बहुत अभिमान था सो उसी अभिमान के चलते वो जलाशय का जल पिता है और उसकी उसी वक़्त मृत्यु हो जाती है। काफी समय बीतने के बाद भी नकुल जब लौट के नहीं आते है तो उनकी खोज में सहदेव निकलते है और सहदेव भी उसी जलाशय के पास पहुँचते है और उनको भी वही आकाशवाणी सुनाई देती है लेकि सहदेव भी नकुल की तरह अभिमान स्वरुप मारे जाते है। क्रमशः अर्जुन और भीम का भी यही हाल होता है और चारो पांडवो की मृत्यु हो जाती है। 


कुछ देर बाद जब चारो भाई में से कोई लौट कर नहीं आते है तो युधिष्ठिर अपने भाइयो की खोज में निकलते है और उसी जलाशय के पास पहुँच जाते है, तब ही पुनः आकाशवाणी होती है की मैंने तुम्हारे भाइयो को मृत्युलोक भेज दिया है और अगर तुम अपनी मृत्यु नहीं चाहते हो तो मेरे जिज्ञासा को शांत करो जिसके लिए तुम्हे मेरे कुछ प्रश्नो के जवाब देने होंगे। युधिष्ठिर ने विनम्रता के साथ सवाल पूछने को कहा तभी वहाँ यक्ष देवता प्रकट हुए और उन्होंने युधिष्ठिर से कुछ प्रश्न किये जिसका युधिष्ठिर ने सहजता के साथ जवाब दिया और उनकी जिज्ञासा को शान्त किया। 

फलस्वरूप यक्ष देवता युधिष्ठिर से काफी प्रसन्न हुए और युधिष्ठिर को जीवनदान दिया साथ ही वरदान दिया की आप अपने किसी एक भाई के प्राण वापस ले सकते है, युधिष्ठिर ने वरदान स्वरुप नकुल का को माँगा। इसपर  यक्ष देवता अचंभित हर और पुछा की तुमने नकुल का प्राण वापस क्यों माँगा, तुम्हे अर्जुन या भीम में से किसी एक के प्राण को वापस मांगना चाहिए था जो आजीवन तुम्हारी रक्षा करते। इस पर युधिष्ठिर ने कहा हे यक्ष ! बिना तीन भाइयो के मै इस संरक्षनका क्या करता, मैंने नकुल के प्राण इसलिए वापस माँगा क्युकी वह माता माद्री का पुत्र है और मै माता कुंती का इस तरह से दोनों माताओ का एक-एक पुत्र जीवित रहेगा जिससे दोनों कुल जीवित रहेंगे।

युधिष्ठिर के इस धर्मपरायण स्वाभाव से प्रसन्न होकर यक्ष देव ने सभी पांडवो को पुनः जीवित कर दिया और इस तरह से पांडवो का अभिमान टुटा। श्री कृष्ण ने कहा है की जो धार की रक्षा करते है धर्म उनकी रक्षा करता है, युधिष्ठिर ने इसी स्वाभाव को अपनाया जिससे पांडवो को जीवनदान मिला। 

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