द्रोणाचार्य का पांडवो तथा कौरवो से गुरु-दक्षिणा माँगना :
जब पांडवो तथा कौरवो की शीक्षा पूर्ण हो गई तो पांडवो और कौरवो ने अपने गुरु को गुरु-दक्षिणा देना चाहा, इसपर द्रोणाचार्य को पांचाल नरेश तथा अपने पूर्व मित्र द्वारा किये गए अपमान का स्मरण हो आया और उन्होंने राजकुमारों से कहा की, हे राजकुमारों ! यदि अगर तुम लोग मुझे गुरु दक्षिणा देना चाहते हो तो पांचाल नरेश द्रुपद को मेरे सामने बन्दी बनाकर पेश करो। यही मेरी गुरु दक्षिणा होगी, गुरुदेव के इस प्रकार कहने पर सभी राजकुमार अपने अपने अस्त्र-शस्त्र लेकर पंचाल
देश की और चल दिए।
पांडवो तथा कौरवो का पांचाल देश पर हमला करना :
पंचाल पहुँचने पर कौरवो ने पहले हमला करने की गुरु द्रोणाचार्य से आज्ञा माँगी, जिसके लिए पांडवो ने भी हामी भरते हुए कहा की, हे गुरुदेव ! अगर दुर्योधन द्रुपद को बन्दी बनाने में असफल रहते है तो हम पांडव युद्ध करेंगे।
गुरु की आज्ञा के बाद ने बाद दुर्योधन ने एक बरी सेना के साथ पंचाल देश पर आक्रमण कर दिया जिसके बाद दोनों पक्षों के मध्य भयंकर युद्ध होने लगा, किन्तु अंत में कौरव परास्त होने लगे जिसके बाद पांडवो को युद्ध में हस्तछेप करना परा जिसके बाद पंचाल देश के राजा द्रुपद को अर्जुन और भीम के पराक्रम के सामने घुटने टेकने परे। अर्जुन ने द्रुपद को बंदी बना लिया और गुरु द्रोणाचार्य के समक्ष ले आये, द्रुपद को बन्दी के रूप में देखकर द्रोणाचार्य ने कहा, हे द्रुपद ! अब तुम्हारे राज्य का स्वामी मै हो चूका हूँ। आज से वर्षो पूर्व मै तो तुम्हे अपना मित्र समझकर तुम्हारे पास आया था, किन्तु तुमने मुझे अपना मित्र नहीं स्वीकारा था सो अब बताओ क्या तुम मेरी मित्रता को स्वीकारते हो ?
द्रुपद का द्रोणाचर्य से माफ़ी माँगना :
द्रुपद ने लज्जा से द्रोणाचर्य के सामने सिर झुकाकर अपनी भूल के लिए माफ़ी मांगते हुये बोले, हे द्रोण ! आपको अपना मित्र न मानना मेरी भूल थी और उसके लिए मै आपसे से तहेदिल से माफ़ी मांगता हूँ, मै और मेरा राज्य दोनों ही अब आपके आधीन है सो अब आपकी जो इच्छा हो करे।
द्रोणाचार्य द्वारा द्रुपद को आधा राज्य लौटना :
द्रोणाचार्य ने द्रुपद को जवाब देते हुए कहा की, हे द्रुपद ! तुमने कहा था की मित्रता सामान लोगो के वर्ग में होती है, अतः मै तुमसे बराबरी का मित्र भाव रखने के लिए तुम्हे तुम्हारा आधा राज्य लौटा रहा हूँ। इतना कहकर द्रोणाचार्य ने गंगा नदी के दक्षिण तट का राज्य द्रुपद को लौटा दिया और शेष को स्वयं रख लिया।
द्रुपद द्वारा द्रोणाचार्य की हत्या का योजना बनाना :
द्रोणाचार्य से पराजित होने के उपरान्त महराज द्रुपद अत्यंत लज्जित हुए और उन्हें निचा दिखने के लिए उपाए सोचने लगे। इसी बात की चिंता इ वो एक बार घूमते-घूमते कल्याणी नगरी के ब्राम्हणो के बिच जा पहुंचे, जहाँ उनकी मुलाकात याज तथा उपयाज नामक महान कर्मकाण्डी ब्राम्हण भाइयो से हुई। राजा द्रुपद ने उनदोनों कर्मकाण्डी ब्राम्हण भाइयो की सेवा कर प्रसन्न कर दिया उसके बाद राजा द्रुपद ने कर्मकाण्डी ब्राम्हण भाइयो से द्रोणाचार्य के वध का उपाए पुछा।द्रुपद के सवाल का जवाब देते हुए बड़े भाई याज ने कहा, हे राजन ! इसके लिए आप एक विशाल यज्ञ का आयोजन कर के अग्नि देव को प्रसन्न करे, जिससे वो आपको बलशाली पुत्र का वरदान दे देंगे।
धृष्ट्द्युमन तथा द्रौपदी का जन्म :
द्रुपद ने कर्मकाण्डी ब्राम्हण भाइयो की बात मान कर एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया। उनके यज्ञ से अग्नि देव प्रसन्न हुए और उन्हें एक ऐसा पुत्र दिया जो सम्पूर्ण आयुध एवं कवच-कुण्डल से युक्त था। उसके पश्चात उसी यज्ञ कुंड से एक कन्या उत्पन्न हुई, जिसके नेत्र खिले हुए कमल के समान देदीप्यमान थे, भौहे चन्द्रमा के समान वक्र थी तथा उसका वर्ण श्यामल था। उसके उत्पन्न होते ही आकाशवाणी हुई की, इस बालिका का जन्म छत्रियो के संहार और कौरवो के विनाश के लिए हुआ है। इस प्रकार से बालक का नाम धृष्ट्द्युमन और बालिका का नाम कृष्णा ( द्रौपदी ) रखा गया।
कथा के मुख्य पात्र :
पांडव : युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम, नकुल, सहदेव |
कौरव : दुर्योधन समेत 99 भाई |
द्रोणाचार्य : पांडवो तथा कौरवो के गुरु |
द्रुपद : पांचाल देश के राजा | द्रोणाचार्य के बाल्यकाल के मित्र | धृष्ट्द्युमन तथा द्रौपदी के पिता |
सम्पादक : विशाल कुमार सिंह