1.धर्मग्रन्थ: पवित्र ग्रंथो के दो भाग- श्रुति और स्मिरीति। श्रुति के अंतर्गत वेद आते है और स्मिरीति के अंतर्गत पुराण, महाभारत, रामायण एवं स्मृतिया आदि है। वेदो को ही धर्मग्रन्थ कहा गया है, हमारे 4 वेद है- ऋग्वेद, यजुवेद, सामवेद और अथर्ववेद। वेदो का सार उपनिषद और उपनिषद का सार गीता है। ईश्वर से सुनकर हजारो वर्ष पहले जिन्होंने वेद सुनाये व्है संस्थापक है।
2. एकेशरवाद : ईश्वर एक ही है जिसे ब्रम्हा कहा गया है। वेदो का एकेशरवाद दुनिया के अन्य धर्मो से अलग है। देवी देवता असंख्य है लेकिन सत्य एक ही है और वो ब्रम्हा है और उससे बढ़कर कोई नहीं।
3. मोक्ष : ब्रम्हांड में असंख्य आत्माये है, जो शरीर धारण कर जन्म और मरण के चक्र में घूमती रहती है। आत्मा का अंतिम लक्छ्य मोक्ष है और ये सिर्फ भक्ति, ज्ञान और योग से प्राप्त हो सकता है, यही सनातन पथ है।
4. प्रार्थना : संधिकाल हिन्दू प्रार्थना का एक तरीका है, संधि 8 वक़्त की होती है। इन 8 संधियों में सूर्य उड़ाए और अस्त अर्थात 2 वक़्त की संधि महत्वपूर्ण है।
5. तीर्थ : तीर्थो में चारधाम, ज्योतिर्लिंग, कैलाश मानसरोवर,शक्तिपीठ और सप्तपुरी की यात्रा का महत्ताव है। आयोध्या, मथुरा, काशी, जगन्नाथ और प्रयाग तीर्थो में सर्वोच्च है।
6. त्यौहार : चंद्र और सूर्य की शङ्करंतियो के अनुसार कुछ त्यौहार मनाये जाते है।मक्कर सक्रांति और कुम्भ के सर्वश्रेस्ठ है। पर्वो में रामनवमी, कृष्णा जन्माअष्टमी, हनुमान जयंती, नवरात्री, शिवरात्रि, दीपावली, वसंत पंचमी, छठ, ओणम, गणेश चतुर्थी आदि प्रमुख है।
7. व्रत-उपवास : सूर्य सक्रांतियो में उत्सव, तो चंद्र संक्रांति में व्रतो का महत्वा है। वरतो में एकादशी, प्रदोष और श्रावण मास ही प्रमुख व्रत है। साधुजन चातुर्मास अर्थात श्रावण, भाद्रपद, आश्र्विन और कार्तिक माह में व्रत रखते है।
8 . दान-पुण्य : पुराणों में अन्नदान, वस्त्रदान, विद्यादान, अभयदान, और धनदान को श्रेष्ठ माना गया है। वेदो में 3 प्रकार के डाटा कहे गए है - उत्तम, मध्यम और निकृष्टतम।
9. यज्ञ : यज्ञ के 5 प्रकार - ब्रम्हायज्ञ, देवयज्ञ, पितृयज्ञ, वैश्र्वदेवयज्ञ और अतिथि यज्ञ। ये पाँचो यज्ञ जीवन के महत्वपूर्ण है इनके बिना अआप्के आत्मा को तृप्ति नहीं मिल सकती।
10. मंदिर : प्रति गुरुवार को मंदिर जाना जरुरी है। पुराणों में उल्लेखित देवताओ के मन्दिर को ही मन्दिर माना गया है, किसी बाबा की समाधी आदि को नहीं। मंदिर का अर्थ है- मन से दूर एक स्थान।
11. 16 संस्कार :गर्भादान, पुसंवन, सीमन्तोन्नयन, जातक्रम, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, चूड़ाकर्म, कर्णवेध, उपनयन, केशान्त, सम्वर्तन, विवाह और वानप्रस्थ, परिव्राज्य या सन्यास, पितृमेध या अन्त्यकर्म। कुछ जगहों पर विधारंभ, वेदारंभ और श्राद्धकर्म का भी उल्लेख है। संस्कार से ही धर्म कायम है।
सम्पादक :विशाल कुमार सिंह