महाभारत की समाप्ति के बाद जब रा युधिष्ठिर का राजतिलक हो रहा था तब कौरवो की माता गांधारी ने महाभारत के युद्ध के लिए श्री कृष्ण को जिम्मेवार ठहराते हुए श्री कृष्ण को ये साप दिया था की जैसे कौरवो का नाश हुआ वैसे ही यदुवंश का नाश होगा। साप के चलते श्रीकृष्ण यदुवंशियो को लेकर चिंतित रहने लगे और फिर कुछ दिनों बाद सात्यिक और कृतवर्मा का विवाह हो गया लेकिन यही विवाह यदुवंशियो के विनाश का कारन बना, विवाह के बाद सात्यिक और कृतवर्मा हमेशा लड़ते रहते थे। एकदिन सात्यिक ने गुसे में आकर कृतवर्मा का सर काट दिया जिसके कारण यदुवंशी 2 समूह में बट गए और आपसी युद्ध सुर हो गया जिसके कारण ये एक दूसरे का ही नर संहार करने लगे।
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नहीं हुआ था यदुवंश का नाश :
इस आपसी कलह में श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युमन और मित्र सात्यिक समेत लगभग सभी यदुवंशी मारे गए थे, केवल बब्रु और दारुक ही बचे रह गए थे जिन्होंने बाद में यदुवंश को आगे बढ़ाया था।
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श्रीकृष्ण की मृतयु का रहस्य :
द्वारिक को भगवन श्रीकृष्ण ने अपना निवाश स्थान बनाया था और सोमनाथ के पास स्थित प्रभाष छेत्र में अपना सरीर त्यागा था। दरअसल भगवन श्रीकृष्ण इसी प्रभाष छेत्र में अपने कुल का नाश देखकर बहुत व्यथित हो गए थे तभी से वो वही रहने लगे थे।एक दिन भगवान् श्रीकृष्ण एक वृछ के निचे विश्राम कर रहे थे तभी किसी बहेलिये ने उनको हिरन समझ के तीर मार दिया था, यह तीर उनके पैर के कानी ऊंगली मे जा के लगा था तभी प्रभु ने अपना शरीर त्यागने का निश्चय किया।
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जनश्रुति कहती है की एक दिन भगवान् श्रीकृष्ण इसी प्रभास चैत्र के वन में एक पीपल के वृछ के निचे योगनिंद्रा में लेते थे तभी जरा नामक एक बहेलिये ने भूलवश उन्हें हिरन समझकर विषयुक्त बाण चला दिया जो उनके पैर के कानि ऊँगली में जाके लगा और भगवान् श्रीकृष्ण ने इसी को बहाना बना कर अपने शरीर को त्याग दिया लेकिन ये घटना भी प्रभु श्रीकृष्ण की एक लीला थी।
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बानरराज बाली ही था जरा बहेलिया :
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार प्रभु ने त्रेतायुग में राम के अवतार लेकर बाली को छुपकर तीर मारा था इसलिए कृष्णावतार के समाये भगवान् ने उसी बाली को जरा नामक बहेलिया बनाया और अपने लिए वैशी ही मृत्यु चुनी, जैसा की बाली को मृत्यु दिया था।
सम्पादक : विशाल कुमार सिंह
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