अक्सर हम से ये सवाल किया जाता है की, अगर शुन्य की खोज आर्यभट ने की तो रामायण काल में रावण के 10 सिर और महाभारत काल में 100 कौरव कैसे हुए। आज भारत आईडिया इसी का जवाब लेकर आप अब के सामने आया है की आखिर रामायण काल में रावण के 10 सिर और महाभारत काल में 100 कौरव कैसे हुए।
आर्यभट ने 0 का अविष्कार किया था या खोज ??
इस सवाल का जवाब जानने से पहले आपको विज्ञान की 2 क्रियाओ अविष्कार और खोज को समझना होगा।
अविष्कार का मतलब होता है, वो चीज जिसका पहले कोई अस्तित्वा न हो, जो विधमान नहीं है और उसे अलग अलग पदार्थो से बनाया जाये उसे अविष्कार कहते है।
खोज का मतलब होता है, वो चीज जिसका पहले से अस्तित्वा हो, जो पहले से विधमान हो लेकिन समय के काल में खो गयी हो और उसे बाद में ढूंढा जाये उसको खोज कहते है।
उम्मीद है की आप अविष्कार और खोज के बिच अंतर समझ गए होंगे, इस हिसाब से देखा जाए तो विज्ञान भी ये मानता है की आर्यभट ने शून्य की खोज की थी ना की अविष्कार , अब हम जानते है की आखिर आर्यभट ने शुन्य का अविष्कार नहीं किया तो शून्य का अविष्कार हुआ कब था ?
दरअसल शुन्य के अविष्कार का जिक्र वेदो में एक श्लोक के जरिये बताया गया है, जिसमे 1 से लेकर 18 अंको तक (इकाई से परार्ध ) की गयी है, 1 के अंको में 0 लगाने पर क्रमशः ये संख्या बढ़ती जाती है।
(शुक्ल यजुर्वेद 17/2 )
इमा मेSअग्नSइस्टका धेनवः सन्तवेका च दश च शतं च शतं च सहस्त्रं च सहस्त्रं चायुतं चायुतं च नियुतं च नियुतं व नियुतं चप्रयुतं चार्बू दं च नयुर्बु दं च समुद्रश्च मध्यं चान्तश्चपरार्धश्चैता मेSअग्नSइस्टका धेनवः सन्त्वमूत्रामूस मिंन्लोके।
अर्थात हे अग्ने ये इष्टिकाये हमारे लिए अभीस्ट फलदायक कामधेनु गौ माता के सामान है।
ये इस्टका प्रार्धा - संगख तक दी गयी है जिसके बाद ये अनंत तक जाती है
एक से दश, दश से सौ, सौ से हजार, हजार से दश हजार, दश हजार से लाख, लाख से दश लाख, दश लाख से करोड़, करोड़ से दश करोड़, दश करोड़ से अरब, अरब से दश अरब, दश अरब से खरब ,खरब दश खरब, दश खरब से नील, नील से दश निल, दश नील से संगख, संगख से दश संगख, दश संगख से परार्ध.............
अब आप समझ गए हँगे की शून्य हमारे वेदो में सैकड़ो हजारो वर्ष पहले ही गया है इस हिसाब से से आर्यभट ने शून्य की खोज की न की अविष्कार।बीते युगो में इसी के आधार पर क्रमशः 1 के अंको में एक शब्द के अनुसार लगाकर गणना की जाती थी और उसी आधार पर रावण दस सर और 100 कौरव हुए।
उम्मीद है की आपको हमारा ये लेख पसंद आया होगा अब आपसे अगर कोई सवाल करे शुन्य पर तो अब आप जवाब दे सकते है।
सम्पादक :विशाल कुमार सिंह
आर्यभट ने 0 का अविष्कार किया था या खोज ??
इस सवाल का जवाब जानने से पहले आपको विज्ञान की 2 क्रियाओ अविष्कार और खोज को समझना होगा।
अविष्कार का मतलब होता है, वो चीज जिसका पहले कोई अस्तित्वा न हो, जो विधमान नहीं है और उसे अलग अलग पदार्थो से बनाया जाये उसे अविष्कार कहते है।
खोज का मतलब होता है, वो चीज जिसका पहले से अस्तित्वा हो, जो पहले से विधमान हो लेकिन समय के काल में खो गयी हो और उसे बाद में ढूंढा जाये उसको खोज कहते है।
उम्मीद है की आप अविष्कार और खोज के बिच अंतर समझ गए होंगे, इस हिसाब से देखा जाए तो विज्ञान भी ये मानता है की आर्यभट ने शून्य की खोज की थी ना की अविष्कार , अब हम जानते है की आखिर आर्यभट ने शुन्य का अविष्कार नहीं किया तो शून्य का अविष्कार हुआ कब था ?
दरअसल शुन्य के अविष्कार का जिक्र वेदो में एक श्लोक के जरिये बताया गया है, जिसमे 1 से लेकर 18 अंको तक (इकाई से परार्ध ) की गयी है, 1 के अंको में 0 लगाने पर क्रमशः ये संख्या बढ़ती जाती है।
(शुक्ल यजुर्वेद 17/2 )
इमा मेSअग्नSइस्टका धेनवः सन्तवेका च दश च शतं च शतं च सहस्त्रं च सहस्त्रं चायुतं चायुतं च नियुतं च नियुतं व नियुतं चप्रयुतं चार्बू दं च नयुर्बु दं च समुद्रश्च मध्यं चान्तश्चपरार्धश्चैता मेSअग्नSइस्टका धेनवः सन्त्वमूत्रामूस मिंन्लोके।
अर्थात हे अग्ने ये इष्टिकाये हमारे लिए अभीस्ट फलदायक कामधेनु गौ माता के सामान है।
ये इस्टका प्रार्धा - संगख तक दी गयी है जिसके बाद ये अनंत तक जाती है
एक से दश, दश से सौ, सौ से हजार, हजार से दश हजार, दश हजार से लाख, लाख से दश लाख, दश लाख से करोड़, करोड़ से दश करोड़, दश करोड़ से अरब, अरब से दश अरब, दश अरब से खरब ,खरब दश खरब, दश खरब से नील, नील से दश निल, दश नील से संगख, संगख से दश संगख, दश संगख से परार्ध.............
अब आप समझ गए हँगे की शून्य हमारे वेदो में सैकड़ो हजारो वर्ष पहले ही गया है इस हिसाब से से आर्यभट ने शून्य की खोज की न की अविष्कार।बीते युगो में इसी के आधार पर क्रमशः 1 के अंको में एक शब्द के अनुसार लगाकर गणना की जाती थी और उसी आधार पर रावण दस सर और 100 कौरव हुए।
उम्मीद है की आपको हमारा ये लेख पसंद आया होगा अब आपसे अगर कोई सवाल करे शुन्य पर तो अब आप जवाब दे सकते है।
सम्पादक :विशाल कुमार सिंह
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