एक ऐसा व्यक्ति जिसको हिन्दुस्थान के लगभग लोग नहीं जानते होंगे लेकिन उस व्यक्ति ने 1857 की क्रांति में अंग्रेजो के पसीने छुरा दिए थे।
11/4/2018 , बैंगलोर :
यक़ीनन जिस योद्धा के बारे में हम बात करने जा रहे है उसको आप जानते नहीं होंग। क्युकी अक्सर इतिहास वही लिखते है जो जीवित बचते है। वैसे भी हमारे देश में झोलाछाप इतिहासकारो ने एक खाश समुदाय का ही गुण-गाने में व्यस्त रहे जिससे देश को ये पता नहीं चला की आखिरकार सही मायनो में आजादी किसकी वजह से मिली है।
आज हम बात करने जा रहे है खाज्या नायक जो की अंग्रेजो के भील पलटन में एक छोटे से सिपाही थे। खाज्या नायक को चौकियों के निगरानी का काम सौपा गया था , जिसे खाज्या नायक ने 1931 से 1951 तक बरे निष्ठा के साथ किया। एक बार की बात है जब वो गस्त लगा रहे थे तो उन्होंने एक व्यक्ति को यात्रियों को लुटते देखा , फिर क्या था खाज्या नायक बिना सोचे समझे उस लुटेरे पर टूट परे टूट पड़े , जिससे उस अपराधी की मृत्यु हो गयी। लेकिन अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें हत्यारा मानकर 10 वर्षों की कारावास की सजा सुना दी किन्तु खाज्या नायक के अच्छे व्यहवार के कारन इनकी सजा को 5 वर्षो में बदल दिया गया। भले ही खाज्या नायक की सजा कम हो गयी हो लेकिन इनके मन अंग्रेजी हुकूमत के लिए मन में सिर्फ नफरत बच गयी थी जो की जायज था क्युकी खाज्या नायक को बिना किसी गलती के सजा सुनाई गयी थी।
खाज्या नायक बस एक सही मौके की तलाश में थे की वो कैसे अंग्रेजी हुकूमत से बदला ले। इतिहाश्कार Dr. S.N Yadav के अनुसार 1857 में भारत में अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह भरक उठा था , अंग्रेजी हुकूमत को विद्रोहियों से लड़ने के लिए सैनिको की जरुरत थी सो अंग्रजी हुकूमत ने फिर से पुराने सैनिको को बहाल किया जिसमे खाज्या नायक भी शामिल थे। लेकिन खाज्या नायक के मन अंगेजी हुकूमत के लिए मन में घृणा उत्पन हो चुकी थी सो माना जा रहा था की, खाज्या नायक अंग्रेजी हुकूमत को अंदर से नुकसान पहुंचाने की सोच रहे है । पहले तो खाज्या नायक ने अंग्रेजो के व्यूह को समझा फिर सही समय आने पर खाज्या नायक ने ब्रिटिश पल्टन को छोर दिया और निकल परे भारत को अंग्रेजो से मुक्त कराने।
खाज्या नायक के अंदर प्रतिशोध की आग इस कदर लगी हुई थी की बस वो अंग्रेजी हुकूमत का खात्मा चाहते थे , इसी संदर्व में खाज्या नायक बडवानी (मध्यप्रदेश) छेत्र के क्रन्तिकारी नेता भीम नायक से मिले , जो की खाज्या नायक बहनोई लगते थे। यही से इन दोनों की जोरि सुरु हुई , जिसने भील की सेना बनाकर नीमार छेत्र में अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह कर दिया। भील लोग सिक्छा और आर्थिक दोनों रूप से कमजोर थे , पर उनमे वीरता और महराणा प्रताप के सैनिक होने का स्वाभिमान कूट-कूट कर भरा हुआ था। खाज्या नायक और भील सेना जब 1857 की क्रांति में एक बार खरे हो जाते थे तो पीछे हटने का कोई प्रश्न ही नहीं आता था , सायद इसी का परिणाम था की इन्होने कितने जगह युद्ध किया और जीता भी , अंग्रेजो के खजाने लुटे इन्होने , अंग्रेज सैनिको का वध किया। अंग्रेजी हुकूमत ने काफी कोशिस की इन्हे पकड़ने की लेकिन जंगल और घाटियों के जानकर होने के कारण अंग्रेजी हुकूमत इन्हे पकर नहीं पाती थी।
अंततः अंग्रेजी हुकूमत ने खाज्या नायक और उसके साथियो का खबर देने वाले को 1 हजार रुपये पुरष्कार देने का फरमान जारी किया और शायद आपको पता होगा की उस 1 हजार रूपया अभी के 10 लैक्स के लगभग बराबर होगा । फिर भी खाज्या नायक और उनकी भील सेना नहीं रुकी और लोगो को ये लोग संगठित करते रहे। 11 अप्रैल , 1858 को बडवानी और सिलावद के बिच स्थित अमाल्यापणी गाओ में अंग्रेजी सेना का खाज्या नायक और भील मुठभेड़ हो गयी। चुकी अंगेरजी सेना के पास आधुनिक हथियार थे और खाज्या नायक और उनकी सेना के पास वही पुराने हथियार थे। प्रातः 8 बजे से लेकर संध्या 3 बजे तक युद्ध चला और जब युद्ध ख़त्म हुई तो खाज्या नायक अपने पुत्र दौलत सिंह तथा भील सैनिको के साथ वीरगति को प्राप्त कर चुके थे। लेकिन इतिहास के पनो में ये वीर न जाने किस पने में दफ़्न हो गए।
भले ही हमारा हिन्दुस्थान इनको भूल गया हो लेकिन आज भी निमाड़ छेत्र इनको एक महापुरुष की तरह मानता है। आपको हमने ये कहानी इस लिए सुनाई की इतिहास के पनो में न जाने कितने ऐसे महापुरुष दफ़्न है जिनके बलिदान के बारे में हमें अवश्य जानना चाहिए।
भारत आईडिया का इस खबर पर विचार : भारत आईडिया का मानना है की हमें आजादी इतनी आसानी से नहीं मिली है , आज जो हम खुली हवा में सास ले पा रहे है तो इसका कारन वो बलिदानी पुरुष है जिन्होंने अपने प्राण को त्यागने के लिए एक पल भी नहीं सोचा और इसका कारण क्या था बस उनकी आने वाली पीढ़ी खुली हवा में सास ले सके। लेकिन हम अपने महापुरषो को भूल चुके है आज के युवाओ को 10 महापुरषो के बारे में भी ज्ञात नहीं होगा , सो भारत आईडिया आप सब से विनती करता है अपने इतिहास को जाने तभी हम बचेंगे और हमारा देश बचेगा।
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विशाल कुमार सिंह
11/4/2018 , बैंगलोर :
यक़ीनन जिस योद्धा के बारे में हम बात करने जा रहे है उसको आप जानते नहीं होंग। क्युकी अक्सर इतिहास वही लिखते है जो जीवित बचते है। वैसे भी हमारे देश में झोलाछाप इतिहासकारो ने एक खाश समुदाय का ही गुण-गाने में व्यस्त रहे जिससे देश को ये पता नहीं चला की आखिरकार सही मायनो में आजादी किसकी वजह से मिली है।
आज हम बात करने जा रहे है खाज्या नायक जो की अंग्रेजो के भील पलटन में एक छोटे से सिपाही थे। खाज्या नायक को चौकियों के निगरानी का काम सौपा गया था , जिसे खाज्या नायक ने 1931 से 1951 तक बरे निष्ठा के साथ किया। एक बार की बात है जब वो गस्त लगा रहे थे तो उन्होंने एक व्यक्ति को यात्रियों को लुटते देखा , फिर क्या था खाज्या नायक बिना सोचे समझे उस लुटेरे पर टूट परे टूट पड़े , जिससे उस अपराधी की मृत्यु हो गयी। लेकिन अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें हत्यारा मानकर 10 वर्षों की कारावास की सजा सुना दी किन्तु खाज्या नायक के अच्छे व्यहवार के कारन इनकी सजा को 5 वर्षो में बदल दिया गया। भले ही खाज्या नायक की सजा कम हो गयी हो लेकिन इनके मन अंग्रेजी हुकूमत के लिए मन में सिर्फ नफरत बच गयी थी जो की जायज था क्युकी खाज्या नायक को बिना किसी गलती के सजा सुनाई गयी थी।
खाज्या नायक बस एक सही मौके की तलाश में थे की वो कैसे अंग्रेजी हुकूमत से बदला ले। इतिहाश्कार Dr. S.N Yadav के अनुसार 1857 में भारत में अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह भरक उठा था , अंग्रेजी हुकूमत को विद्रोहियों से लड़ने के लिए सैनिको की जरुरत थी सो अंग्रजी हुकूमत ने फिर से पुराने सैनिको को बहाल किया जिसमे खाज्या नायक भी शामिल थे। लेकिन खाज्या नायक के मन अंगेजी हुकूमत के लिए मन में घृणा उत्पन हो चुकी थी सो माना जा रहा था की, खाज्या नायक अंग्रेजी हुकूमत को अंदर से नुकसान पहुंचाने की सोच रहे है । पहले तो खाज्या नायक ने अंग्रेजो के व्यूह को समझा फिर सही समय आने पर खाज्या नायक ने ब्रिटिश पल्टन को छोर दिया और निकल परे भारत को अंग्रेजो से मुक्त कराने।
खाज्या नायक के अंदर प्रतिशोध की आग इस कदर लगी हुई थी की बस वो अंग्रेजी हुकूमत का खात्मा चाहते थे , इसी संदर्व में खाज्या नायक बडवानी (मध्यप्रदेश) छेत्र के क्रन्तिकारी नेता भीम नायक से मिले , जो की खाज्या नायक बहनोई लगते थे। यही से इन दोनों की जोरि सुरु हुई , जिसने भील की सेना बनाकर नीमार छेत्र में अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह कर दिया। भील लोग सिक्छा और आर्थिक दोनों रूप से कमजोर थे , पर उनमे वीरता और महराणा प्रताप के सैनिक होने का स्वाभिमान कूट-कूट कर भरा हुआ था। खाज्या नायक और भील सेना जब 1857 की क्रांति में एक बार खरे हो जाते थे तो पीछे हटने का कोई प्रश्न ही नहीं आता था , सायद इसी का परिणाम था की इन्होने कितने जगह युद्ध किया और जीता भी , अंग्रेजो के खजाने लुटे इन्होने , अंग्रेज सैनिको का वध किया। अंग्रेजी हुकूमत ने काफी कोशिस की इन्हे पकड़ने की लेकिन जंगल और घाटियों के जानकर होने के कारण अंग्रेजी हुकूमत इन्हे पकर नहीं पाती थी।
अंततः अंग्रेजी हुकूमत ने खाज्या नायक और उसके साथियो का खबर देने वाले को 1 हजार रुपये पुरष्कार देने का फरमान जारी किया और शायद आपको पता होगा की उस 1 हजार रूपया अभी के 10 लैक्स के लगभग बराबर होगा । फिर भी खाज्या नायक और उनकी भील सेना नहीं रुकी और लोगो को ये लोग संगठित करते रहे। 11 अप्रैल , 1858 को बडवानी और सिलावद के बिच स्थित अमाल्यापणी गाओ में अंग्रेजी सेना का खाज्या नायक और भील मुठभेड़ हो गयी। चुकी अंगेरजी सेना के पास आधुनिक हथियार थे और खाज्या नायक और उनकी सेना के पास वही पुराने हथियार थे। प्रातः 8 बजे से लेकर संध्या 3 बजे तक युद्ध चला और जब युद्ध ख़त्म हुई तो खाज्या नायक अपने पुत्र दौलत सिंह तथा भील सैनिको के साथ वीरगति को प्राप्त कर चुके थे। लेकिन इतिहास के पनो में ये वीर न जाने किस पने में दफ़्न हो गए।
भले ही हमारा हिन्दुस्थान इनको भूल गया हो लेकिन आज भी निमाड़ छेत्र इनको एक महापुरुष की तरह मानता है। आपको हमने ये कहानी इस लिए सुनाई की इतिहास के पनो में न जाने कितने ऐसे महापुरुष दफ़्न है जिनके बलिदान के बारे में हमें अवश्य जानना चाहिए।
भारत आईडिया का इस खबर पर विचार : भारत आईडिया का मानना है की हमें आजादी इतनी आसानी से नहीं मिली है , आज जो हम खुली हवा में सास ले पा रहे है तो इसका कारन वो बलिदानी पुरुष है जिन्होंने अपने प्राण को त्यागने के लिए एक पल भी नहीं सोचा और इसका कारण क्या था बस उनकी आने वाली पीढ़ी खुली हवा में सास ले सके। लेकिन हम अपने महापुरषो को भूल चुके है आज के युवाओ को 10 महापुरषो के बारे में भी ज्ञात नहीं होगा , सो भारत आईडिया आप सब से विनती करता है अपने इतिहास को जाने तभी हम बचेंगे और हमारा देश बचेगा।
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विशाल कुमार सिंह