जलियावाला बागकाण्ड सब को याद होगा कैसे उसमे अंग्रेजो ने मासूमो का खून बहाया था आज हम उसी पर बात करने वाले है।
बैंगलोर :13/04/2017
संक्छेप विवरण :
जलिआवाला बाग़ अमृतसर , पंजाब राज्य में स्थित है। इस स्थान पर 13 अप्रैल , 1919 को अंग्रेजो ने भारतीय प्रदर्शनकारियों पर अंधाधुन गोलिया चलवाई थी और एक बरी संख्या में लोगो की हत्या की थी। इस घिनौनी वारदात को जेनरल डायर के नेतृत्वा में अंजाम दिया गया था। ये तारीख आज भी एक बारे नर संहार के रूप में याद किया जाता है जिसमे इनसानियत की हत्या की गयी थी। जलियावाला बाग़ कांड भारत के काले इतिहास के रूप में याद किया जाता है ।
डायर का हत्याकांड :
13 अप्रैल , 1919 को बैसाखी के दिन 20 हजार वीर पुत्रो द्वारा ने जलीवाला बाग़ में आजादी एवं स्वाधीनता के लिए यज्ञ किया था बिना किसी हिंसा और हथियार के। आपको हैरानी होगी की इस मुहीम में बच्चे, औरते, बूढ़े, जवान सब शामिल हुए थे और सब ने एक सुर में ही स्वाधीनता की मांग की थी बस यही बात अंग्रेजो को हजम नहीं हुई और अपने बल का प्रदर्शन करने के लिए अंग्रेजो की एक बटालियन जनरल डायर के नेतृत्वा में बाग़ की और बढ़ी। जलियावाला बाग़ में जैसे ही अंग्रेजी बटालियन पहुंची उन्होंने लोगो पर लगातार 15 मिनट तक गोलिया बरसाई।
इस बाग़ में चारो और उच्ची-उच्ची दीवारे थी जिसे कूद कर पार कर पाना नामुमकिन था। प्रवेश के लिए एक छोटा सा द्वार था जहाँ से लोग अपनी जान बचा सकते थे लेकिन जनरल डायर ने वहाँ भी मशीन गन लगवादी थी , और इस हैवान ने लगातार उस वक़्त तक गोलिया चलवाई जब तक गोलिया ख़त्म नहीं हुई। एक सरकारी आक्रो के अनुमान से तक़रीबन उस दिन 400 व्यक्ति शहीद है थे तथा 2000 लोग घायल हुए थे।
पूर्ण विस्तार :
जिस दिन ये घटना हुई वो रविवार का दिन था अगल बगल के सरे गाओ वाले वैशाखी का त्यौहार मानाने के लिए बाग़ में इकठा हुए थे लेकिन जनरल डायर ने 11 अप्रैल भारतीय इतिहास का कला दिन बना दिया। जनरल दायर ने अपने सारे सैनिको को बाग़ के मात्र एक प्रवेश द्वार पर तैनात किया था , जनरल डायर ने बिना किसी चेतावनी के 50 सैनिको को गोलिया चलाने का आदेश दिया और देखते ही देखते क्या बच्चे क्या बूढ़े सभी पर अंधाधुन गोलिया चलाई गयी। मात्र 10 से 15 मिनट में 1650 गोलिया दागी गयी जिसमे कुछ लोगो ने अपनी जान बचाने की कोशिश की लेकिन भगदड़ के कारण कुचल के मारे गए।
इस गोलीकांड की सबसे दिल दहलादेने वाली जो बात रही वो ये थी की जब गोलीबारी ख़त्म हुई उसके अगले दिन सुबह तक किसी की मरहम-पट्टी तक नहीं करने दिया गया नहीं किसी को जल तक दिया गया। अंग्रजी हुकूमत ने हमारे लोगो को तरपा तरपा कर मरने की चाह थी।
जलियावाला बाग कुए की कहानी :
उसी जलियावाला बाग में एक कुआ था जिसमे लोग अपनी जान बचाने के लिए कूद परे लेकिन उनकी जान नहीं बच पायी और वो सहीद होगये। गोलीबारी ख़त्म होने के अगले-दिन उस कुवे से लगभग 100 से ऊपर सव निकाले गये थे और इस कारण इस कुवे का नाम मृतकूप नाम दिया गया।
इस कांड के बाद अंग्रेजी सरकार की राय :
हत्यारे डायर ने हंटर कमीशन से कहा था की मैंने 15 मिनट तक लगातार गोलिया चलवाई और बहुत सरे गुलामो को मौत के घाट उतार दिया। इस घटना को पंजाब के शासक सर माइकल ओ डायर ने सही ठहराया और पत्र लिक्ज के हत्यारे दायर की प्रसंशा भी की।
इस कांड के बाद अमृतसर की स्थिति :
सन 1857 के बाद अंग्रेजी सरकार के ये सबसे बड़ा गोलीकांड था। इस घटना पुरे अमृतसर में लोग भड़क चुके थे अंगेजी हुकूमत ने लोगो को शांत करने के लिए अमृतसर का पिने का पानी बंद कर दिया , बिजली के तार काट दिए गए , खुले चौराहो पर अमृतसर के हर जगह पर लोगो पर कोरेबरसाए गए। यहाँ तक की रेल की तिश्री श्रेणी के टिकट को बंद कर दिया जिस से लोग यात्रा न कर सके।
उधम सिंह का बदला :
इसी बाग़ में उधम सिंह के पिता जी भी शहीद हो गए थे। इसका बदला लेने के लिए उधम सिंह इंग्लैंड गए और एक दिन वह नीच डायर एक सभा में भासन दे रहा था और वो अपने भासन में जलियावाला बागकाण्ड का गुणगाण कर रहा था , फिर क्या था उधम सिंह जी ने अपनी पिस्टल निकली और दायर पर निशाना साधते हुए उसका काम तमाम कर दिया। इस प्रकार इस वीर ने अपने पिता तथा अनेक मासूमो के मौत का बदला ले लिया। अंत में अंग्रेजी अदालत ने उधम सिंह को फांसी की सजा सुना दी। उद्यम सिंह के इस बलिदान के लिया भारत हमेशा ऋणी रहेगा।
भारत आईडिया का विचार :
आज इस काले दिन को याद करते हुए भारत आईडिया उन सभी शहीदो को नमन करता है और उधम सिंह को भी नमन करता है की अकेले ही उन्होंने भारत पर किये गए अत्याचार का बदला लिया।
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विशाल कुमार सिंह
बैंगलोर :13/04/2017
संक्छेप विवरण :
जलिआवाला बाग़ अमृतसर , पंजाब राज्य में स्थित है। इस स्थान पर 13 अप्रैल , 1919 को अंग्रेजो ने भारतीय प्रदर्शनकारियों पर अंधाधुन गोलिया चलवाई थी और एक बरी संख्या में लोगो की हत्या की थी। इस घिनौनी वारदात को जेनरल डायर के नेतृत्वा में अंजाम दिया गया था। ये तारीख आज भी एक बारे नर संहार के रूप में याद किया जाता है जिसमे इनसानियत की हत्या की गयी थी। जलियावाला बाग़ कांड भारत के काले इतिहास के रूप में याद किया जाता है ।
डायर का हत्याकांड :
13 अप्रैल , 1919 को बैसाखी के दिन 20 हजार वीर पुत्रो द्वारा ने जलीवाला बाग़ में आजादी एवं स्वाधीनता के लिए यज्ञ किया था बिना किसी हिंसा और हथियार के। आपको हैरानी होगी की इस मुहीम में बच्चे, औरते, बूढ़े, जवान सब शामिल हुए थे और सब ने एक सुर में ही स्वाधीनता की मांग की थी बस यही बात अंग्रेजो को हजम नहीं हुई और अपने बल का प्रदर्शन करने के लिए अंग्रेजो की एक बटालियन जनरल डायर के नेतृत्वा में बाग़ की और बढ़ी। जलियावाला बाग़ में जैसे ही अंग्रेजी बटालियन पहुंची उन्होंने लोगो पर लगातार 15 मिनट तक गोलिया बरसाई।
इस बाग़ में चारो और उच्ची-उच्ची दीवारे थी जिसे कूद कर पार कर पाना नामुमकिन था। प्रवेश के लिए एक छोटा सा द्वार था जहाँ से लोग अपनी जान बचा सकते थे लेकिन जनरल डायर ने वहाँ भी मशीन गन लगवादी थी , और इस हैवान ने लगातार उस वक़्त तक गोलिया चलवाई जब तक गोलिया ख़त्म नहीं हुई। एक सरकारी आक्रो के अनुमान से तक़रीबन उस दिन 400 व्यक्ति शहीद है थे तथा 2000 लोग घायल हुए थे।
पूर्ण विस्तार :
जिस दिन ये घटना हुई वो रविवार का दिन था अगल बगल के सरे गाओ वाले वैशाखी का त्यौहार मानाने के लिए बाग़ में इकठा हुए थे लेकिन जनरल डायर ने 11 अप्रैल भारतीय इतिहास का कला दिन बना दिया। जनरल दायर ने अपने सारे सैनिको को बाग़ के मात्र एक प्रवेश द्वार पर तैनात किया था , जनरल डायर ने बिना किसी चेतावनी के 50 सैनिको को गोलिया चलाने का आदेश दिया और देखते ही देखते क्या बच्चे क्या बूढ़े सभी पर अंधाधुन गोलिया चलाई गयी। मात्र 10 से 15 मिनट में 1650 गोलिया दागी गयी जिसमे कुछ लोगो ने अपनी जान बचाने की कोशिश की लेकिन भगदड़ के कारण कुचल के मारे गए।
इस गोलीकांड की सबसे दिल दहलादेने वाली जो बात रही वो ये थी की जब गोलीबारी ख़त्म हुई उसके अगले दिन सुबह तक किसी की मरहम-पट्टी तक नहीं करने दिया गया नहीं किसी को जल तक दिया गया। अंग्रजी हुकूमत ने हमारे लोगो को तरपा तरपा कर मरने की चाह थी।
जलियावाला बाग कुए की कहानी :
उसी जलियावाला बाग में एक कुआ था जिसमे लोग अपनी जान बचाने के लिए कूद परे लेकिन उनकी जान नहीं बच पायी और वो सहीद होगये। गोलीबारी ख़त्म होने के अगले-दिन उस कुवे से लगभग 100 से ऊपर सव निकाले गये थे और इस कारण इस कुवे का नाम मृतकूप नाम दिया गया।
इस कांड के बाद अंग्रेजी सरकार की राय :
हत्यारे डायर ने हंटर कमीशन से कहा था की मैंने 15 मिनट तक लगातार गोलिया चलवाई और बहुत सरे गुलामो को मौत के घाट उतार दिया। इस घटना को पंजाब के शासक सर माइकल ओ डायर ने सही ठहराया और पत्र लिक्ज के हत्यारे दायर की प्रसंशा भी की।
इस कांड के बाद अमृतसर की स्थिति :
सन 1857 के बाद अंग्रेजी सरकार के ये सबसे बड़ा गोलीकांड था। इस घटना पुरे अमृतसर में लोग भड़क चुके थे अंगेजी हुकूमत ने लोगो को शांत करने के लिए अमृतसर का पिने का पानी बंद कर दिया , बिजली के तार काट दिए गए , खुले चौराहो पर अमृतसर के हर जगह पर लोगो पर कोरेबरसाए गए। यहाँ तक की रेल की तिश्री श्रेणी के टिकट को बंद कर दिया जिस से लोग यात्रा न कर सके।
उधम सिंह का बदला :
इसी बाग़ में उधम सिंह के पिता जी भी शहीद हो गए थे। इसका बदला लेने के लिए उधम सिंह इंग्लैंड गए और एक दिन वह नीच डायर एक सभा में भासन दे रहा था और वो अपने भासन में जलियावाला बागकाण्ड का गुणगाण कर रहा था , फिर क्या था उधम सिंह जी ने अपनी पिस्टल निकली और दायर पर निशाना साधते हुए उसका काम तमाम कर दिया। इस प्रकार इस वीर ने अपने पिता तथा अनेक मासूमो के मौत का बदला ले लिया। अंत में अंग्रेजी अदालत ने उधम सिंह को फांसी की सजा सुना दी। उद्यम सिंह के इस बलिदान के लिया भारत हमेशा ऋणी रहेगा।
भारत आईडिया का विचार :
आज इस काले दिन को याद करते हुए भारत आईडिया उन सभी शहीदो को नमन करता है और उधम सिंह को भी नमन करता है की अकेले ही उन्होंने भारत पर किये गए अत्याचार का बदला लिया।
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विशाल कुमार सिंह