बैंगलोर :
हम सब को पता है की देश में अभी कितनी धर्म और मजहब पर बहशबाजी चल रही है , किसका क्या धर्म है क्या कर्म है....... बस इसी बहशबाजी में लोग लगे हुए है। धर्म और कर्म की बात करे तो इसका सबसे बेहतर उदहारण महायोद्धा तछक से शायद ही कोई होगा।
एक महान योद्धा जिसके पराक्रम से अरब सेना को अपने घुटने टेकने पर मजबूर हो गए थे। सन ७११ ईश्वी की बात है , अरब के पहले मुस्लिम आक्रमण-कारी मोहम्मद बिन कासिम ने मुल्तान पर विजय के बाद एक ऐसा रक्तपात मचाया था मानो धरती थरा उठी थी........ क्या बच्चे क्या बूढ़े क्या स्त्री , इस सैतान ने किसी को नहीं बक्छा था। भारतीय सैनिको ने ऐसी बर्बरता पहली बार देखि थी , अरब के हैवान ने सारे युवाओ को बंदी बना लिया था और उसके मन में एक ही मंशा थी कैसे भी पुरे हिन्दुस्थान को जित लिया जाये।
महायोद्धा तछक के पिता कासिम की सेना से युद्ध करते हुए वीर-गति को प्राप्त हो गए थे। लुटेरी अरब सेना जब महायोद्धा तछक के गाओ पहुंची तो मानो हाहाकार मच गया , स्त्रियों की इज्जत लूटी गयी ,बुजुर्गो का क़त्ल कर दिया गया , युवाओ को बंदी बना लिया गया। महायोद्धा तछक के घर पर भी सब भयेभीत हो गए थे।
महायोद्धा तछक की माँ आने वाले खतरे को भाप गयी थी , इसलिए महायोद्धा तछक की माँ ने अपने बच्चो को शीने से लगाया बेटियों के साथ गलत व्यहवार न करे दुश्मन इसलिए अपनी फूल जैसी बच्चियों को मार डाला उसके बाद खुद को भी खंजर से ख़त्म कर लिया। महायोद्धा तछक मात्र 8 वर्ष के थे जब ये घटनाये उनके सामने हो रही थी , महायोद्धा तछक के सामने उनकी माँ तथा बहने ख़त्म हो चुकी थी........महायोद्धा तछक की उम्र काफी छोटी थी इसलिए उन्होंने अपनी जान बचाने में ही भलाई समझी , आँखों में आशु लिए अंतिम बार महायोद्धा तछक ने अपनी मृत माँ और बहनो को देखा और जंगल की और भाग गए।
२५ वर्ष बित चुके थे , अब वो छोटा बालक 33 वर्ष का हो चूका था और कनौज के प्रतापी शासक नागभट द्युतिये का अंगरक्छक था। महायोद्धा तछक २५ वर्षो से क्रोध की आग में जल रहे थे , न तो वो खुश होते थे नहीं दुखी मनो उसकी आँखो में बस बदले की आग हो। महायोद्धा तछक के वीरता के कारनामे पुरे राज्य में प्रचलित थे........ सैनिक इनको अपना आदर्श मानते थे क्युकी महायोद्धा तछक के भुजाओ में इतनी शक्ति थी की उन्होंने एक बार तलवार की मात्र एक वॉर से एक हठी हाथी को मार गिराया था। कनौज के राजा नागभट के राज्य पर अरबियो का राज नहीं था , सिंध को जितने वाले अरबी हर बार कनौज पर हमला करते थे लेकिन हर बार कनौज की सेना अरबियो को खदेड़ देती थी।युद्ध के सनातन नियमो के कारण कभी कनौज की सेना ने अरबी सैनिको का पीछा नहीं किया लेकिन अरबी सैनिक भी हठी थे वो बार बार जितने की लालशा से हमला करते थे..... हमलो का दौर लगातार १५ वर्षो रहा।
ठीक इसी क्रम में फिर से अरबी सेना कनौज पर हमला करने को तैयार थी और २ दिनों में वो कनौज के सिमा में प्रवेश करने वाली थी इसलिए कनौज के राजा ने तत्कालीन शभा बुलाई और महामंत्री और सैनिको से युद्ध की रण-निति पर चर्चा करने लगे , तभी महायोद्धा तछक खरे हुए और बोले -
"महराज इस बार हमको दुश्मन की उसकी भाषा में ही जवाब देना होगा"
राजा ने महायोद्धा तछक की और कुछ देर देखे और बोले - खुल के बोलो महायोद्धा तछक हम समझ नहीं पा रहे है आप क्या बोलना चाहते है , तुरंत उत्तर आया की अरबी सैनिक हठी है वो बार-बार हमला करते रहेंगे और हम नियमो का हवाला देके उनको छोड़ते रहेंगे , आखिर ये कब तक होगा ये तो हमारी प्रजा के साथ अन्याय है। महायोद्धा तछक ने कहा , इस बार हम उनका अंत तक पीछा करेंगे और उनको खत्म करेंगे और उनका खात्मा करेंगे। लेकिन महायोद्धा तछक की ये सब बाते सुनकर राजा के चेहरे पर सिकन आगयी , राजा ने कहा ये तो सनातन नियमो के विरुद्ध है...... हम ऐसा कैसे कर सकते है , ये मर्यादा के खिलाफ है।
महायोद्धा तछकने राजा को जवाब देते हुए कहा की महराज एक राजा के लिए उसकी मर्यादा सिर्फ अपनी प्रजा की ररक्षा करना होता है , अपनी बातो को महायोद्धा तछकने आगे रखते हुए कहा की ये अरबी इंसान के भेष में हैवान है , जिन्हे सिर्फ खून बहाना आता है। महायोद्धा तछक ने कहा की महाराज आप देवल और मुल्तान का युद्ध आप यद् करे , कासिम ने वहाँ कैसे कत्लेआम मचाया था , स्त्रियों के इज्जत लूटी गयी थी ,बुधो को मर दिया गया था ,जवानो को बंदी बना लिया गया था...... अगर आप यही सब अपनी प्रजा के साथ होते देखना चाहते है तो बेसक नियमो का पालन कीजिये।
महाराज ने प्रजा तथा सैनिको को निहारा , सब की आँखों में महायोद्धा तछक की बात के लिए सहमति दिख रही थी , महारज ने भी सोचा और महायोद्धा तछक तथा अपने खाश सैनिको के साथ गुप्त कमरे में युद्ध की नीतियों पर चर्चा करने के लिए चले गए। अगली शाम को अरबी सेना कनौज के सिमा पर आ चुकी थी और कनौज की सेना और अरबी सेना आमने सामने खरी थी , अनुमान ये था की अगली सुबह भीषण युद्ध जरूर होगा।
आधी रत बीत चुकी थी , अरबी सैनिक अपने शिविर में सो रहे थे की तभी महायोद्धा तछक ने कनौज की एक चौथाई सेना के साथ अरबी शिविर पर हमला कर दिया और देखते ही देखते आधी अरबी सैनिक गाजर मूली की तरह काट दिए गए। ऐसा पहली बार हुआ था की किसी राज्य ने अपने नियमो को भूल कर अपनी प्रजा के रक्षा के लिए दुश्मनो को उसी के भासा में जवाब दिया गया था। महायोद्धा तछक ने जब हमला किया तो मानो उसके अंदर २५ वर्षो की भूख हो , महायोद्धा तछक जिधर अपना घोड़ा लेकर जाते थे उधर लाशो का ढेर लग जाता था। महायोद्धा तछक के लिए आज वो घरी थी जिसके लिए वो २५ वर्षो से जल रहा था आज वक़्त था अपनी माँ बहनो के क़त्ल का बदला लेने का।
सुबह होने तक लगभग अरबी सैनिक मारे जा चुके थे और जो बचे खुचे थे जान बचाकर दूसरी दिशा में भागने लगे लेकिन , दूसरी और कनौज के राजा नागभट अपनी एक सेना की टुकड़ी के साथ भगोड़े अरबी सैनिको का इंतजार कर रहे थे। जैसे बची हुई अरबी सेना की टुकड़ी कनौज के राजा नागभट के करीब पहुंची , नागभट ने बिना समय गवाए अपने सैनिको को हमला करने का हुक्म दिया और बची-खुची भी अरब सेना ख़त्म कर दी गयी। पहली बार किसी ने भारत पर हमला करने वाले दुश्मनो को ऐसा जवाब दिया था।
विजय के बाद जब राजा नागभट ने अपने सेना नायको की और देखा तो उस में महायोद्धा तछक कही नहीं दिख रहे थे। काफी खोज के बाद महायोद्धा तछक अरबी सैनिको के मृत शरीर के बिच सूरज की तेज रौशनी की तरह चमक रहे थे । जिसने भी उनकी मृत सरीर को देखा उसकी आँखों में आशु आगए , राजा नागभट के हुक्म के बाद महायोद्धा तछक का सरीर पुरे सम्मान के साथ राज्य में लाया गया। जिसके बाद राजा नागभट भी महायोद्धा तछक के मृत सरीर को देख कर खुद के आशुवो को नहीं रोक पाए और उसके चरणों के पास जाकर अपनी तलवार को उसके मृत सरीर को समर्पण कर दिया , और चीला-चीला कर विलापने लगे। चीखते वक़्त राजा नागभट के जो शब्द थे -
"महायोद्धा तछक आप आर्यावर्त के वीरता के शिखर थे ,भारत के विरो नव आजतक अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए प्राण नेव्छावर करना सीखा था लेकिन अपने मातृभूमि की रक्षा के लिए प्राण लेना सीखा दिया , आप महान थे....... भारत आपको युगो-युगो तक यद् रखेगा "
इतिहास साक्छी है की , अगले ३ सताब्दियों तक भारत पर किसी अरब शासक ने हमला करने की चेष्ठा तक नहीं की। महायोद्धा तछक ने ये सिखाया की मातृभूमि की रक्षा के लिए प्राण सिर्फ दिए ही नहीं लिए भी जाते है और दुश्मनो के साथ अच्छा व्यहवार नहीं करना चाहिए क्युकी वो लातो के भुत है बातो से नहीं मानते।
भारत आईडिया का इस खबर पर विचार : जहाँ तक मुझे लगता है हमारा इतिहास हमें बहुत कुछ सिखाता है लेकिन , हम अपनी व्यस्तता में इतने लीन है की कुछ ऐसे लोगो को भूल गए जिनका बलिदान सराहनिये था और शायद इतिहास के साथ खेलने वाले वामपंथियों ने और अंगूठा छाप इतिहास-करो ने इनका नाम ही इतिहास के पनो से मिटा दिया। ऐसे वीर पुरुष को भारत आईडिया की तरफ से सत-सत नमन।
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विशाल कुमार सिंह